6/3/07

बचपन और माँ


जब भी अपने बचपन के बारे मैं याद करता हूँ तो बहुत ही थोड़ी बातें याद आती हैं | सुनने मैने अजीब लगता है पेर ये सच है | दरअसल मैं वर्तमान के साथ जीने का इतना आदि हो चुका था (और अब भी हूँ ) की भूत को भूलता चला गया, उन बातों को भी जिनको कभी भुलाया ही नही जा सकता था | आदमी के लिए एह बहुत ज़रूरी है की वक़्त वक़्त पेर अपने अटतेट को याद करता रहे|
ऐसा इसीलिए लिख रहा हूँ की आज जब मैने अपने बचपन की बातें याद करने की कोशिश की तो सिवाय अपने माँ के बारे मैं ही बातें याद आईं| मैं काफ़ी देर तक सोचता रहा पेर ऐसी कोई बात ही याद नही आई जिसमे माँ नही हो या उसका ज़िक्र ना हो |

जब भी मैने अपना शाम को देर तक बाहर खेलना याद किया , मुझे याद आया माँ का बुलाना

जब भी मैने अपना सुबह school जाना याद कीय अमुझे याद आया माँ का नेहलना, तैयार कारवाना, नाश्ता करना

जब भी मुझे School से लौटना याद आया तो मुझे याद आया माँ का आते ही प्यार करना और ये पूछना की आज school मैं क्या क्या हुआ

जब भी मुझे गर्मियों की छुट्टियाँ याद आईं मुझे याद आया बार बार माँ का ठंडी लास्सी, ठंडा दूध बना के पिलाना और radio station ले जाना.

खाना बनाती माँ

झाड़ू लगाती माँ

प्यार से सुलाती माँ

डाँट के उठाती हुई माँ

गोड़ी मैं उठाती माँ

मल मल के नेहलाती माँ

पिताजी की डाँट से बचाती माँ



ऐसा लगता है की माँ और बचपन एक बात हैं |



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