8/20/07

मंज़िल



वो मंजिलों तक कहॉ पहुंचे , जो परिंदे उडे, उड़ाने से |

- दानिश

8/12/07

तीन व्यक्तित्व


हर इन्सान के तीन व्यक्तित्व होते हैं,

पहला वो जो वो खुद होता है,
दूसरा वो जो वो खुद को समझता है,
तीसरा वो जो दूसरे उसको समझते हैं |

इन तीनों मॆं इन्सान हमेशा पहले व्यक्तित्व के हिसाब से ही काम करता है, जबकि वो करना हमेशा दुसरे व्यक्तित्व के जैसा चाहता है | जो इन्सान अपने पहले और दुसरे व्यक्तित्व को एक बाना लेते हैं उनका तीसरा व्यक्तित्व अपने आपने आप पहले दोनो जैसा हो जाता है |

8/9/07

सुबह


नींद जल्दी खुल गयी थी, सोच कर लेटा रहा,
जब सुबह होगी तब उठुंगा |
बल्कि सच तो यह था की,
जब भी मैं उठता , तभी सुबह होती |



रोना


केहते हैं की रोने से मन हल्का हो जाता है और ये सच भी है | जब भी मैं रो लेता हूँ तो ऐसा लगता है की मैने कोई अपराध किया था जिसकी सज़ा मुझे मिल गयी और अब सब कुछ सामान्य हो गया है पता नही क्यूं रोने से ऐसा लगता है की जैसे आत्मा धुल गयी हो, जैसे की सारा बोझ उतर गया हो, जैसे की कोई बहुत अच्छा काम किया हो, जैसे की जब नही रो रहे थे तो किसी से बच रहे थे या किसी से नज़रें नहीं मिला पा रहे थे, जो की अब नही करना है क्यूँकी अब सब सामान्य हो गया है |

पर असल मैं परेशानी यह है की आजकल रोना ही नही आता है | कोई कुछ भी कह जाए , कुछ भी बोल जाए, कितना ही बुरा क्यूं ना लगे दिल को, कितना ही दुख क्यूं ना हो | रोना है की आता ही नही है चाहे किसी के सामने हो या अकेले मैं | अगर तुम दुख को feel करोगे तो ही रोना आएगा पैर आजकल हमारे पास कुछ भी महसूस इकरने को नही है | किसी के पास समय ही नही है की कुछ फ़ील करे या कुछ सोचे | पर समय ही नही है |

बच्चों की यही बात बहुत ही अच्छी है की वो महसूस करते हैं और दिल की गहराइयों से महसूस करते हैं | इसीलिए इतना रोते है और उतना ही हँसते भी हैं | हमको यही बच्चों से सीखना चाहिये |

मैं रोया परदेस मैं , भीगा माँ का प्यार |
दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार |
छोटा करके देखिए जीवन का विस्तार |
आँखों भर आकाश है बाहों भर संसार |