6/3/07

गोगोल



कल निकोलाई गोगोल कि प्रसिद्ध कृति "The Overcoat" पढी | रुसी साहित्य मैं काफी समय से पढता हुआ आ रह हूँ , उस हिसाब से अभी तक मुझे गोगोल कि Overcoat पढ़ लेनी चाहिऐ थी | पर सबसे पहेल मैंने दोस्तोयेव्सकी और तोल्स्तोय को पढा था, और उनको पढने के बाद मैं उन्ही कि और रचनाएं ही पढ़ रहा था |

कुछ दिन पहले मीरा नायर कि "Namesake" फिल्म देखी और उस फिल्म की कहानी मॆं "गोगोल" (खुद गोगोल का नाम भी ) कि "Overcoat" कहानी इस तरह गुंथी हुई थी कि मैं पढे बिना नही रह पाया। भला हो Project Gutenburg का जिसके होने से आपको किसी भी कहानी, नोवेल, कविता को नेट पर ढूँढने लिए समय नही बरबाद करना पड़ता | गूगल के बहुत से अच्छे कामों मॆं अब Project Gutenburg भी जुड़ गया है | "Namesake" एक बहुत ही अच्छी फिल्म है, और देखते हुए आपके लगता नही है कि आप एक नोवेल पेर बनी हुई फिल्म देख रहे हैं या खुद नोवेल पढ़ रहे हैं | ऐसी फिल्म कम ही बनती हैं जिनके बारे मैं उपन्यास लिखने वाला खुद कहे कि हाँ निर्देशक ने किताब के साथ न्याय किया है |

गोगोल को पढ़ते हुए ऐसा लगा कि मैं दोस्तोयेव्सकी को ही पढ़ रहा हूँ | गोगोल का नायक भी दोस्तोयेव्सकी के नायक कि तरह ही "छोटा आदमी "(खुद दोस्तोयेव्सकी के शब्दों मॆं ) है | Overcoat के "अकैकी" और "White Nights" के "मकार" मे तो जैसे फर्क ही नही है | दोस्तोयेव्सकी को छोटे आदमी कि त्रासदी से पूरे समाज को उजागर करने कि प्रेरणा निश्चित है गोगोल से मिली है | दोनो के नायकों मॆं बहुत सामनाता होते हुए भी दोनो के नायकों मॆं एक बहुत ही बड़ा और बुनियादी अंतर है | दोस्तोयेव्सकी का नायक पाठक को बिल्कुल अपने जैसा ही लगता है, उसके विचार बिल्कुल वोही होते हैं जो खुद पाठक के मन मॆं अक्सर आते रहते हैं | गोगोल का नायक पाठक के विचारों से इसलिये नही मिलता क्यूंकि वो खुद कोई विचार व्यक्त ही नही करता | वो समाज के , अभीजात्य वर्ग कि बातों पर ध्यान ही नही देता है और अपनी नज़र मॆं उनको कोई भी प्राथमिकता नही देता है | वो प्राथमिकता इसीलिये नही देता है क्यों वो ऐसा बन नही पायेगा बल्कि वो ये सब सोचना ही नही चाहता | जबकि इसके उलट दोस्तोयेव्सकी का नायक सब समझता है और ये भी समझता है कि वो क्याकर सकता है और क्या नही उसके मन मैं बड़ा बनने कि चाह है पर वो उस तरह से बड़ा नही बनना चाहता जैसे कि और लोग हैं | वो अपनी ही तरह बड़ा बनना चाहता है |

दोनो नायक सरकारी कार्यालय मैं दस्तावेजों कि नक़ल करके प्रतिलिपि बनाने वाले हैं पर फिर भी जब गोगोल के नायक को ऐसा कार्य दिया जाता है जिसमे नक़ल के साथ साथ हल्का सा बदलाव भी है तो उसको पसीने आ जाते हैं और वो कहता है कि "कोई साधारण नक़ल का ही काम हो तो अच्छा है "| जबकि इसके उलट दोस्तोयेव्सकी का नायक सपने देखता है कि उसके अच्छे काम के कारन उसको ऊपर तक प्रशंसा मिले और मौका मिलने पर वो ऐसा काम करने कि कोशिश भी करता है |

पर फिर भी दोनो मैं बहुत समानता है | दोनो ही अधेड़ उम्र के हैं, दोनो ही नक़ल करने वाले लिपिक हैं , दोनो ही "छोटे आदमी" हैं | गोगोल और दोस्तोयेव्सकी की इस छोटे आदमी की त्रासदी के द्वारा संगठित रूस के तत्कालीन समाज का चित्रण वाकई अदभुत है |

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