8/9/07

रोना


केहते हैं की रोने से मन हल्का हो जाता है और ये सच भी है | जब भी मैं रो लेता हूँ तो ऐसा लगता है की मैने कोई अपराध किया था जिसकी सज़ा मुझे मिल गयी और अब सब कुछ सामान्य हो गया है पता नही क्यूं रोने से ऐसा लगता है की जैसे आत्मा धुल गयी हो, जैसे की सारा बोझ उतर गया हो, जैसे की कोई बहुत अच्छा काम किया हो, जैसे की जब नही रो रहे थे तो किसी से बच रहे थे या किसी से नज़रें नहीं मिला पा रहे थे, जो की अब नही करना है क्यूँकी अब सब सामान्य हो गया है |

पर असल मैं परेशानी यह है की आजकल रोना ही नही आता है | कोई कुछ भी कह जाए , कुछ भी बोल जाए, कितना ही बुरा क्यूं ना लगे दिल को, कितना ही दुख क्यूं ना हो | रोना है की आता ही नही है चाहे किसी के सामने हो या अकेले मैं | अगर तुम दुख को feel करोगे तो ही रोना आएगा पैर आजकल हमारे पास कुछ भी महसूस इकरने को नही है | किसी के पास समय ही नही है की कुछ फ़ील करे या कुछ सोचे | पर समय ही नही है |

बच्चों की यही बात बहुत ही अच्छी है की वो महसूस करते हैं और दिल की गहराइयों से महसूस करते हैं | इसीलिए इतना रोते है और उतना ही हँसते भी हैं | हमको यही बच्चों से सीखना चाहिये |

मैं रोया परदेस मैं , भीगा माँ का प्यार |
दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार |
छोटा करके देखिए जीवन का विस्तार |
आँखों भर आकाश है बाहों भर संसार |

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